सुखी डाली एकांकी की समीक्षा | Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha

सुखी डाली एकांकी की समीक्षा | Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha

सुखी डाली एकांकी की समीक्षा | Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha

नमस्कार दोस्तों, आज की इस लेख में सुखी डाली एकांकी की समीक्षा [Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha] करेंगे| यह लेख उन अनेक विद्यार्थियों के लिए लिखा गया हैं जो B.a की पढ़ाइ कर रहे हैं| तो आइये आज की इस लेख की शुरुवात करते हैं तो आइये लेख की शुरुवात करते हैं और जानते हैं की सुखी डाली एकांकी की समीक्षा को [ Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha ]

सुखी डाली एकांकी की समीक्षा | Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha
सुखी डाली एकांकी की समीक्षा | Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha

सुखी डाली एकांकी की समीक्षा [ Sukhee Dalee Ekanki Ki Sameeksha ]

श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ हिन्दी साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। ‘अश्क’ जी ने गद्य की सभी विधाओं में रचना की है। इनका विशेष योगदान कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में है। हिन्दी एकांकी के उद्भव और विकास में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा साहित्य जगत को समृद्ध किया है। एकांकी के क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ को स्थापित करने में इन्होंने अपनी विशेष शक्ति और कौशल का परिचय दिया है।

कथानक या कथावस्तु [ Kathanak Ya Kathavastu ]

दादा मूलराज का परिवार इस विघटन युग में भी एकता का एक आदर्श नमूना है। मानव प्रगति के इस के युग में जब व्यक्ति स्वतन्त्रता को अराजकता की हद तक महत्व देता है, दादा मूलराज अपने समस्त कुटुम्ब को एक यूनिट बनाये हैं, उस पर पूर्ण रूप से अपना अधिकार जमाये उस महान वट वृक्ष की भांति अटल खड़े हैं, जिसकी लम्बी-2 डालियां उसके आंगन में एक बड़े छाते की भांति धरती को आच्छादित किये हुए, अनगिनत घोंसलों को अपने पत्तों में छिपाये, वर्षो से तूफान और आंधियों का सामना किये जा रही हैं।

इस प्रकार दादा मूलराज एक वट वृक्ष हैं, और परिवार का हर सदस्य उस वृक्ष की हरी-भरी डाली। परिवार में अनुशासन हीनता की हलचल हिलोरें लेने लगती हैं। लगता है सब कुछ बिखर जायेगा। होता यह है कि मूलराज के छोटे पोते का विवाह होता है। बहू सुशिक्षित, स्वतंत्र एवं आधुनिक विचारों वाली है। उस घर की हर वस्तु और कार्य-व्यापार में पुरातन पन्थ की गन्ध आती है।

बेला जो परेश की पत्नी है इन सब कारणों से परिवार से अलग रहना चाहती है। मूलराज के परिवार की अन्य स्त्रियाँ मिलनसार व हंसमुख हैं। लेकिन बेला परिवार से कटी हुई है, वह बात-2 पर अपने मायके का दम्भ भरती है। इसके कारण वह परिवार की अन्य स्त्रियों के उपहास-परिहास का कारण बनती है। मूलराज को इन सब परिस्थितियों का जब पता चलता है तो वह परिवार के अन्य स्त्री-पुरूष सदस्यों को बुलाकर बला का आदर सम्मान करने का आदेश देते हैं।.. बेला के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य अनुशासित हैं, अतएव दादा की बात मानकर तद्नुसार आचरण करते हैं। अब हर ओर बेला को परिवार में सम्मान-आदर बिखरा उड़ेला हुआ मालूम होता है। घर में वह जिस ओर से गुजरती है उसे सम्मान मिलता है, लेकिन उसे वह मूक अपमान सा लगता है।

बेला इन परिस्थितियों से उबकर एक दिन दादा मूलराज के पास अपनी मनोव्यथा भी व्यक्त करने जाती है, लेकिन दादा कहते हैं कि तुम्हारे सम्मान के लिए मैनें ही परिवार के सभी सदस्यों से कहां है, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि इस परिवार रूपी वट वृक्ष की एक डाल टूटकर अलग हो जावे। तब बेला भावावेश में धे कण्ठ से कहती है-” दादा जी, आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते, पर क्या आप यही चाहेंगे कि पेड़ से लगी वह डाल सूखा मुरझा जाये।” यहीं एकांकी कथा समाप्त हो जाती है।

पात्र अथवा चरित्र चित्रण [ Patra athva Charitra Chitran ]

इस एकांकी में कुल चौदह पात्र हैं इनमें पांच पुरूष हैं और आठ स्त्रियां हैं। पात्रों की संख्या के हिसाब से यह एकांकी नाटक का स्वरूप धारण कर लेता है। इन सभी पात्रों में दादा मूलराज, बेला और मझली बहू का चरित्र ही मुख्य रूप से सामने आता है। शेष पात्र गौड़ हैं।

“दादा मूलराज के व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव का परिचय ‘ अश्क’ जी नाटक के आरम्भ में ही दे देते हैं। मूलराज परिवार को एक वृक्ष की भांति और सदस्यों को हरे-भरे पत्ते युक्त डालियों की भांति मानते हैं। दादा का चरित्र परिवार के मुखिया के रूप में सामने आता है, जो परिवार का विघटन किसी भी कीमत पर नहीं चाहता।

इस एकांकी की दूसरी प्रमुख पात्र मंझली बहू है। जो सारे पात्रों में सबसे अधिक जीवन्त, सरल हृदय, हसमुख और जिन्दगी जीने वाली है। उसकी हंसी और ठहाकों से पूरा घर गूंजा रहता है परेश और बेला के बीच उत्पन्न विरोधों और विवादों का भण्डाफोड़ परिवार के सामने सबल ढंग से रखती है। जब बेला घर के फर्निचरों का तिरस्कार परेश के सामने करती है तब भी मझली बहू बहुत ही अलमस्त ढंग से उसका बखान करती है-“छोटी बहू ने अपने मायके के बड़े-2 कमरों और उसके बहुमूल्य फर्निचरों का बखान किया (हंसती है) और महाशय परेश की भी न चलने दी । बेचारे भींगी बिल्ली बने दादा जी के पास चले गये।

इस एकांकी की तीसरी प्रमुख पात्र के रूप में बेला आती है। वह आधुनिक संस्कारों में पली एक धनी की बेटी है। वह दादा मूलराज के चहल-पहल, हँसी ठहाको और अस्त-व्यस्तता से युक्त पारिवारिक वातावरण में घुटन महसूस करती है- “मैं किन लोगों में आ गयी हू, ये कैसे लोग है?” उसे शान्ति सुनियोजित जीवन पसन्द है। इसीलिए वह परिवार से अलग होकर सुव्यवस्थित गृहस्थी बसाना चाहती है।

परिवार के लोगों के व्यवहार से उसका मन बदल जाता है • और वह परिवार रूपी वट वृक्ष की सूखी डाली बनने को तैयार नहीं है यह बात उसके कथन से स्पष्ट हो जाती है-“दादा जी आप पेड़ से किसी डाली को टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते, पर क्या आप चाहेंगे कि पेड़ से लगी-2 वह डाल सूखकर मुरझा जाए……।”

कथोपकथन या संवाद [ Kathopathan Ya Sanvaad ]

इस एकांकी के कुछ संवाद लम्बे है तथा कुछ संवाद छोटे हैं जहां परिस्थितियों का विवेचन हुआ है अथवा दादा मूलराज द्वारा परिवार की एकता पर बल दिये जाने वाले व्याख्यान टाइप संवाद है अथवा जहाँ द्वन्द या मँझली बहू द्वारा बेला का परिवार के प्रति आचरण प्रकट होता है वहां पर संवाद आवश्यकता से अधिक लम्बे 10-10 और 20-25 पंक्तियों का हो गया है।

Manjhali Bahu [ मंझली बहू ]

मैं तो ऊपर सामान रखने गई थी। बहुत बातें तो मैंने सुनी ही नहीं बहुत समझ भी नहीं पाई। अंग्रेजी में गिटपिट कर रहे थे। छोटी बहू का पारा कुछ चढ़ा हुआ था। इतना मालूम हुआ कि परेश स्नान कर कमरे में गया तो बहूरानी ने सारा फर्नीचर निकालकर बाहर रख दिया था।….. और जो समान पड़ा था, वह भी उठाकर बाहर फेंक दिया ।”

ऐसी संवाद योजना निस्संदेह नाटक की अभिनयेता में बाधक तो बनते ही है, अभिनय में भी व्यवधान उत्पन्न करते हैं इसके विपरीत छोटे-2 संवाद भी मिलते है जो अभिनय क्षमता से पूर्ण है। कहीं-कहीं तो संवादों के बीच में ही सांकेतिक ढंग पर छोड़ दिया है। यह अश्क जी की अपनी विशेषता है। ऐसे संवाद जहां अभिनेयता में सहायक है, वही दर्शक या पाठक में उत्सुकता जगाती है।

एकांकी की भाषा परिष्कृत, संकेतात्मक, चुटीली और व्यंग्यपूर्ण हैं। इसमें पंजाबी भाषा की गहरी छाप दिखायी देती है। कथोपकथन में कथा एवं चरित्र विकास की क्षमता मिलती है। इसमें एक ही बात खटकती है कि एकांकी के मूल पात्र मूलराज के संवाद आवश्यकता से अधिक लम्बे हो गये हैं। वह संवाद की जगह भाषण जैसा मालूम होता है।

चरम सीमा [ Charam Seema ]

तीसरे प्रमुख पात्र बेला में ही अर्द्धन्द का समावेश मिलता है। अन्य पात्र गौड़ है। दादा मूलराज का संवाद नेता के वक्तव्य जैसा लगता है। परिवार के प्रति दिये गये आदर सम्मान बेला की मूक उपेक्षा मालूम पड़ती है, तब वह अन्तर्व्यथा से तड़प उठती है। बेला होकर कुर्सी में धंस जाती है) “न जाने मैं क्या चाहती हूँ ? (सिसकने लगती है) पर मैं इतना जानती हूँ कि मैं यह सब आदर, सत्कार, सुख आराम नहीं चाहती। “

इस नाटक का अन्त नाटक की तरह हुआ है। इसकी समाप्ति चरम सीमा पर नहीं हुई है। चरम सीमा पर न होकर आगे बढ़कर परिणाम पर हुई है। एकांकी के अन्त में बेला दादा मूलराज के परिवार रूपी वट की हरी-भरी डाली बनने को कहती है। यहाँ एक तरह से नाटक में आये संघर्ष को परिणाम तक पहुँचा दिया है। दादा मूलराज और बेला का वार्तालाप करवा कर जैसे समस्या का समाधान प्रस्तुत किया जाता है, उस समय अन्त किया गया है, जो नाटक में ही सामान्यतः मिलती है। यह कलात्मक दोष’ अश्क’ जी की इस एकांकी में झलकता है।

शिल्प विधान [ Shilp Vidhaan ]

इस एकांकी में तीन दृश्य हैं, तथा दृश्य के प्रारम्भ में रंगमंचीय व्यवस्था का चित्रण ठीक ढंग से किया गया है। पात्रों के हाव-भाव, मुख-मुद्रा आदि का चित्रण भी नाटकीय संकेत के द्वारा कर दिया गया है। जो कोष्ठकों में स्पष्ट रूप से संकेतिक हैं। ‘सूखी डाली’ में अश्क जी द्वारा दी गयी मंचीय व्यवस्था बोझिल और नाटक की गति को कम करने वाली है। एकांकी कार द्वारा दिये गये रंग संकेत पात्रों की गतिविधियों और भाव भंगिमा को स्पष्ट अभिव्यक्ति ‘देने वाले हैं। इसमें स्थान एक ही है लेकिन घटनाएँ अलग-2 स्थानों पर घटती है। इतने दृश्य इस एकांकी को नाटक बना देते हैं। इस एकांकी की प्रतीक योजना सराहनीय है।

उद्देश्य [ Uddeshya ]

सूखी डाली में संयुक्त परिवार की एक झांकी है। इसमें परम्परागत पारिवारिक एकता और आधुनिक मान्यता जिसमें परिवारों का विघटन हो रहा है-संयुक्त परिवार टूट रहे हैं-के बीच संघर्ष की कहानी है। ‘अश्क’ जी का उद्देश्य परिवार को विघटित होने से बचाना है। उनके एकांकी के मूलपात्र दादा मूलराज पूर्ण रूप से सफल हैं। इस एकांकी में उद्देश्यपूर्ण है। एकांकीकार ने अपने उद्देश्य को पूर्ण किया है। इसलिए उद्देश्य की दृष्टि से यह पूर्ण सफल है।

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