नमस्कार दोस्तों, आज की इस लेख में आप सभी का स्वागत हैं। 10 की परीक्षाओ में अक्सर किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत की व्याख्या (Kilkat kaanh ghuturuvani aawat Ki Vyakhya) पूछी जाती हैं। लेकिन इसकी व्याख्या सही तरीके से इंटरनेट पर कही नहीं उपलब्ध हैं। इसलिए आज की इस लेख में आप इसकी व्याख्या को जानेंगे। मैं आप सभी विद्यार्थियों से यह अनुरोध करता हूँ की जिस प्रकार से इस लेख को लिखा गया हैं। ठीक उसी प्रकार से आप परीक्षाओ में लिख सकते हैं।

किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत की व्याख्या [ Kilkat kaanh ghuturuvani aawat Ki Vyakhya]
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कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद के आँगन, बिम्ब पकरिबैं धावत॥
कबहुँ निरखि हरि आप छाँह कौ, कर सौ पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत है दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत
कनक-भूमि पर कर-पग छाया, यह उपमा इक राजति।
करि-करि प्रतिपद प्रतिमनि बसुधा, कमल बैठकी साजति।
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु को दूध पियावति॥
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत की सन्दर्भ [Kilkat kaanh ghuturuvani aawat Ki Sandarbh]
सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश महाकवि सूरदास जी द्वारा रचित ‘ सूरसागर ‘ महाकाव्य से हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड में संकलित ‘ पद ‘ शीर्षक से उद्धृत है।
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत की प्रसंग [Kilkat kaanh ghuturuvani aawat Ki Prasang]
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश में सूरदास जी ने मणियुक्त आंगन में घुटनों के बल चलते हुए बालक श्रीकृष्ण की शोभा का वर्णन किया है।
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत की व्याख्या [ Kilkat kaanh ghuturuvani aawat Ki Vyakhya ]
व्याख्या: कवि सूरदास जी श्रीकृष्ण की बाल मनोवृत्तियों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि बालक कृष्ण किलकारी मारते हुए घुटनों के बल चल रहे हैं। नन्द द्वारा बनाए मणियों से युक्त आँगन में श्रीकृष्ण अपनी परछाई देख उसे पकड़ने के लिए दौड़ने लगते हैं।
कभी तो अपनी परछाई देखकर हँसने लगते हैं और कभी उसे पकड़ना चाहते हैं, जब श्रीकृष्ण किलकारी मारते हुए हँसते हैं, तो उनके आगे के दो दाँत बार-बार दिखाई देने लगते हैं, जो अत्यन्त सुशोभित लग रहे हैं। श्रीकृष्ण के हाथ-पैरों की छाया उस पृथ्वी रूपी सोने के फर्श पर ऐसी प्रतीत हो रही है, मानो प्रत्येक मणि में उनके बैठने के लिए पृथ्वी ने कमल का आसन सजा दिया हो अथवा प्रत्येक मणि पर उनक कमल जैसे हाथ-पैरों का प्रतिबिम्ब पड़ने से ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर कमल के फूलों का आसन बिछ रहा हो।
श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को देखकर माता यशोदा जी बहुत आनन्दित होती हैं। और बाबा नन्द को बार-बार वहाँ बुलाती हैं। उसके पश्चात् माता यशोदा सूरदास केप्रभु बालक श्रीकृष्ण को अपने आँचल से ढककर दूध पिलाने लगती हैं।
काव्य सौन्दर्य: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने श्रीकृष्ण की बाल-क्रीड़ाओं का अत्यन्त मनोहारी चित्रण vकिया है।
भाषा: ब्रज शैली: मुक्तक
गुण: प्रसाद और माधुर्य रस: वात्सल्य
छन्द: गीतात्मक शब्द-शक्ति: लक्षणा
अलंकार:
अनुप्रास अलंकार ‘किलकत कान्ह’ और ‘प्रतिपद प्रतिमनि’ में क्रमशः ‘क’, ‘प’ तथा ‘त’ वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार ‘पुनि-पुनि’ और ‘करि करि’ में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने से यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
उपमा अलंकार ‘कनक-भूमि’ और ‘कमल बैठकी’ अर्थात् स्वर्ण रूपी फर्श और कमल जैसा आसन में उपमेय-उपमान की समानता प्रकट की गई है, इसलिए उपम अलंकार है।
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