[B.A. 1st Year] देवदारु निबंध का सारांश | Devdaru Nibandh Ka Saransh

[B.A. 1st Year] देवदारु निबंध का सारांश | Devdaru Nibandh Ka Saransh

प्रिय पाठक allhindi.co.in के एक नए लेख में आप सभी का स्वागत है। आज के इस लेख में आप देवदारु निबंध का सारांश [ Devdaru Nibandh Ka Saransh]  जानने वाले हैं। यह प्रश्न BA 1st year के बच्चों की परीक्षाओ में अक्सर पूछे जाते हैं। इस लेख जिस प्रकार से हैडिंग के साथ लिखा गया हैं। उस प्रकार से आप परीक्षाओ में भी लिख सकते हैं।

Devdaru Nibandh Ka Saransh
देवदारु निबंध का सारांश

देवदारु निबंध का सारांश [Devdaru Nibandh Ka Saransh]

देवदारू का नाम पुराना है, किन्तु यह किसने रखा पता नहीं। यह नाम महाभारत से भी पुराना है। देवदारू का पेड़ देवताओं का दुलारा है, इसलिए महादेव ने समाधि के लिए देवदारु द्रुम वेदिका को पसन्द किया था।

देवदारू नाम की सार्थकता

देवदारू नाम की सार्थकता– ‘द्विवेदी’ जी के अनुसार ध्वनि साम्य साधन है, तक अर्थ का धर्म होना चाहिए। शिव जी ने अन्दर औरबाहर का तुक मिलाने के लिए ही देवदारू को चुना था। महादेव ने आँखें मूंद ली थी, देवदारू ने खोल रखी थी। महादेव ने भी जब आँखें खोल दी तो तुक बिगड़ गया, त्रैलोक्य को मद विह्वल करने वाला देवता कामदेव भस्म हो गया। उस समय क्या देवदारु इतनी मस्ती से झूम रहा होगा ? द्विवेदी जी कहते है कि शायद हाँ क्योंकि शिव की समाधि टूटी थीं, देवदारु का ताण्डव देवता की तुलना में वह निर्विकार रहा- काठ का बना हुआ। कौन जाने इसी कहानी को सुनकर किसी ने इसे देवता का काठ (देव-दारू) नाम दे दिया हो।

देवदारु भगवान शंकर के ताण्डव के उल्लास को व्यंजित करता है

देवदारु भगवान शंकर के ताण्डव के उल्लास को व्यंजित करता है: प्रसंग में कवि ने शिव को उद्दाम नर्तन का भी चित्रण किया है, उन्होंने जिस नर्तन का प्रवर्तन किया, उसे ताण्डव कहते हैं। ताण्डव ऐसा नाच है, जिसमें न रस है और न भाव ही नाचने वाले का उद्देश्य भी नहीं। इसमें एकमात्र चैतन्य की अनुभूति का उल्लास है।

देवदारू का सार

देवदारू का सार: देवदारू एक वृक्ष है, यह वृक्ष सीधे उपर उठता है, और शाखाएं मृत्युलोक को अभयदान देने की मुद्रा में फैलाती है। प्रत्येक शाखा की झबरीली टहनियाँ, कटीले पत्तों के ऐसे सदाबहार लहरदार छन्दों का वितान तानती है, कि छाया चेरी की तरह लगती है।

देवदारु विषयक मान्यताएँ

देवदारु विषयक मान्यताएँ: देवदारु नाम केवल नाम ही नहीं है, बल्कि ओझा लोग इसकी लकड़ी से भूत भी भगाते हैं यद्यपि आज के लोग भूत पर विश्वास नहीं करते किन्तु गाँवों में भूत लगते और भूत भगाते भी देखा है ‘द्विवेदी’ जी कहे हैं, पण्डित जी के मुँह से स्वयं जब यह कहानी सुनी थी तो उस दिन मेरे बालचित्त पर देवदारु की धाक जम गयी थी।

देवदारु की विशेषताएँ:

देवदारु की विशेषताएँ: देवदारु की सब एक से नहीं होते। हर देवदारु का अपना व्यक्तित्व भी होता है, एक को महादेव ने बेटा बना लिया था, किन्तु कुछ लोग सबको समान मानते हैं। लेकिन आजकल के कवियों को देवदारु सरीयों वनस्पति पर विचार करने की फुर्सत नहीं, यहाँ के लोग पीढ़ियों से सिर्फ जाति देखते आ रहें हैं, व्यक्तित्व देखने की उन्हें न आदत है न परवाह ही व्यक्तित्व को यहाँ पूछता हो कौन है ? अर्थमात्र जाति है छन्दमात्र व्यक्तित्व है।

देवदारु मनुष्यों का प्रेरणा स्त्रोत

देवदारु मनुष्यों का प्रेरणा स्त्रोत: जब में कहा हूँ कि देवदारू सुन्दर है तो सुनने वाले सुन्दर का सामान्य अर्थ लेते हैं। लेकिन सौन्दर्य का कौन विशिष्ट रूप में मेरे हृदय में है, यह केवल में हो जानता हूँ। जिसमें शक्ति होता है वह कवि कहलाता है। कवि विशिष्ट अर्थ देना चाहता है किन्तु क्या सब उसके विशिष्ट अर्थ को समझ पाते हैं। कवि के हृदय के साथ जिसका हृदय मिल जाय उसे सहृदय कहते हैं। मेरे पास कवि कौशन नाम की चीज नहीं। इसलिए मैं उसका शानदार वर्णन नहीं कर पाता में केवल देखता भर हूँ कि पाषाण की कठोर जी भेदकर यह देवदारु न जाने किस पाताल से अपना रस खींच रहा है। और उर्ध्वलोक की किसी अज्ञात निर्देशक के तर्जनी संकेत की भाँति कुछ दिखा रहा है। यह इतनी उँगलियाँ क्या यों ही उठी है, कुछ रहस्य अवश्य है।

देवदारू की प्रशस्ति :

देवदारू की प्रशस्ति: मन की सारी भ्रान्ति दूर करने वाले देवदारु, तुम भूत भगवान हो, तुम वहम मिटावने हों, तुम वहम मिटावने हो, तुम भ्रान्ति नसावन हो तुम्हें जानता दीर्घकाल से था। किन्तु पहचानता न था। अब पहचान भी रहा हूँ। तुम देवता के दुलारे हो, महादेव के प्यारे हो, तुम धन्य हो।

देवदारू एक पहाड़ी वृक्ष:

देवदारू एक पहाड़ी वृक्ष:– कुछ भी हो, लेकिन देवदारु है, शानदार वृक्ष देवा के झोकें से जब वह हिलता है, तो उसका अभिजात्य इनमें उठता है। कालिदास में, हिमालय के उस भाग की जहाँ भागीरथी के निर्झर झरते हैं। शीतल मन्द सुगन्ध की चर्चा की है और शीतलता को भागीरथी के निर्झर सीकरों की देन कहा है। सुगन्ध को चतुर्दिक खिले पुष्पों के सम्पर्क की बदौलत, लेकिन मन्दी के लिए मुह कन्दित देवदास का उत्तरदायी ठहराया जमाना बदलता रहा, लेकिन वृक्षों और लताओं के वातावरण से समझौता किया। कितने ही मैदान में जा बसे किन्तु देवदारु नीचे न उतरा।

इससे सम्बंधित लेख: ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त का चरित्र-चित्रण
ध्रुवस्वामिनी नाटक के नायिका की चारित्रिक विशेषताओं
 ध्रुवस्वामिनी नाटक की मूल समस्या
ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा pdf के साथ

देवदारु निबंध से जुड़े कुछ सवाल:

प्रश्न: देवदारु निबंध किसका है?

उत्तर: देवदारु निबंध हजारी प्रसाद द्वेदी हैं ।

प्रश्न: हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध का क्या नाम है?

उत्तर: हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध का नाम देवदारु हैं।

0 thoughts on “[B.A. 1st Year] देवदारु निबंध का सारांश | Devdaru Nibandh Ka Saransh”

Leave a Comment