प्रिय पाठक (Friends & Students)! allhindi.co.in में आपका स्वागत है। उम्मीद करता हूँ आप सब लोग अच्छे होंगे। आज की इस नए लेख में आप ध्रुवस्वामिनी नाटक की ऐतिहासिकता के बारे में जानेंगे। तो चलिए आज की इस लेख की शुरुआत करते है।
ध्रुवस्वामिनी नाटक की ऐतिहासिकता पर विचार कीजिए?
ध्रुवस्वामिनी एक ऐतिहासिक नाटक है। इसमें ऐतिहासिकता और कल्पना का सुन्दर समन्वय है। किसी भी ऐतिहासिक नाटक को सुन्दर एवं रोचक बनाने के लिए कल्पना आवश्यक है। जयशंकर प्रसाद ने भी ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक में ऐतिहासिक और कल्पना का बहुत सुन्दर समन्वय किया है। ‘ध्रुवस्वामिनी’ की ऐतिहासिकता ध्रुवस्वामिनी नाटक जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है। इसमें गुप्तकाल की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति का सूक्ष्म अंकन है। किसी भी रचना की ऐतिहासिक जानने के लिए उसको कथानक पात्र तथा देशकाल की ऐतिहासिक पर विचार करना आवश्यक है।

ध्रुवस्वामिनी के कथानक की ऐतिहासिकता
ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथानक ऐतिहासिक तथ्य एवं ग्रन्थों से उद्धृत है। प्रमुख रूप से संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार विशाखदत्त द्वारा रचित ‘देवी चन्द्रगुप्त’ नाटक जिसके कुछ उद्धरण ‘नाट्य दर्पण’ और ‘शृंगार प्रकाश’ में मिलते हैं। प्रमुख इतिहासकार राखालदास बनर्जी प्रोफेसर अल्तेकर, श्री जायसवाल, श्री भण्डारकर आदि के द्वारा लिखित लेख, सम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति, ‘हर्षचरित’ , नारद और पराशर स्मृति तथा चाणक्य के ‘अर्थशास्त्र’ वाणभट्ट की कादम्बरी के तथ्य इसकी ऐतिहासिक होने की पुष्टि करते हैं।
प्रसाद जी ने ‘ध्रुवस्वामिनी’ के कथन निर्माण के समय सभी ऐतिहासिक स्रोतों पर रहा है। उन्होंने प्रमुख रूप से देवी चन्द्रगुप्त ‘नाटक और अबुल हसन अली के तथ्यों पर विशेष ध्यान दिया है। नाटककार जयशंकर प्रसाद उपर्युक्त ग्रन्थों, तामपत्रों, स्मृतियों से कथा सूत्रों को प्राप्त किया है। समुद्रगुप्त गुप्त वंश के सम्राट थे उनके दो पुत्र थे। रामगुप्त बड़ा और चन्द्रगुप्त छोटा पुत्र था। राजवंशों में योग्य पुत्र को राजकुमार बनाने की प्रथा थी। इसीलिए पिता ने चन्द्रगुप्त को युवराज घोषित किया, किन्तु चन्द्रगुप्त गृह कलह बचाने के लिए बड़ा भाई रामगुप्त को अपना राजयाधिकार सौंप दिया।
ध्रुवस्वामिनी का चन्द्रगुप्त से प्रेम सम्बन्ध था किन्तु उनका विवाह रामगुप्त से हुआ। रामगुप्त शकराज से हारने के बाद ध्रुवस्वामिनी को उसके पास उपहार स्वरूप भेजता है। चन्द्रगुप्त स्त्री वेश में ध्रुवस्वामिनी के साथ शराज के पास जाता है और उसका वध करके आता है तत्पश्चात् रामगुप्त का वध करके विधवा ध्रुवस्वामिनी से स्वयं विवाह कर लेता है। उपर्युक्त तथ्यों से ध्रुवस्वामिनी के कथानक को बनाया गया है । वह ऐतिहासिक है।
नाटक के पात्रों की ऐतिहासिकता प्रसाद जी ने ध्रुवस्वामिनी में कुछ ऐतिहासिक और कुछ काल्पनिक पात्रों को रखा है। ध्रुवस्वामिनी, शकराज, चन्द्रगुप्त, रामगुप्त, मिहिर देव, शिखर स्वामी, ऐतिहासिक पात्र हैं। मन्दाकिनी, कोमा, सामन्त कुमार, हिजड़ा, बौना आदि काल्पनिक पात्र है इस नाटक के सभी पात्र राजनीतिक और सामाजिक परिवेश के अनुरूप है।
जैसे कोमा के भीतर नारी के श्रमस्पद व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। सामन्त कुमार राजनीतिक विद्रोह में सहायक होता है। बौना और हिजड़ा रामगुप्त के विलासिता पूर्ण जीवन को प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार नाटक को जीवंत बनाने के लिए प्रसाद जी ने कुछ ऐतिहासिक और कुछ काल्पनिक पात्रों का सहारा लिया है।
देशकाल की ऐतिहासिकता प्रसाद जी के नाटकों में प्रायः देशकाल का चित्रण कथानक के अनुरूप ही रहता है। राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिस्थितियों के माध्यम से तत्कालीन देशकाल का चित्रण किया है। गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल कहा जाता है। इस समय भारत आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर सुदृढ़ और धन-धान्य पूर्ण था। यही भारत का गौरव इस नाटक में दिखाया गया है।
इस नाटक के पात्रों में रामगुप्त और शकराज सबसे निकृष्ट पात्र है। शौर्य और पराक्रम में चन्द्रगुप्त, स्वाभिमान में ध्रुवस्वामिनी, जागरुकता में पुरोहित, अन्याय के प्रति विद्रोह के लिए सामन्त कुमार आदि सराहनीय पात्र है। राजा के द्वारा योग्य पुत्र को युवराज बनाना राजनीतिक परिदृश्य और स्वतन्त्र निर्णय शक्ति का परिचायक है। पराजित राजा जीत प्राप्त किये राजा को अपनी पुत्री उपहार स्वरूप देता है। धर्म और ज्योतिष के अनेक अन्धविश्वास प्रचलित थे। धूमकेतु का दिखाना अशुभ और ध्रुव तारा का दर्शन शुभ इसके प्रमाण हैं।
इतिहास और कल्पना का सुन्दर समन्वयः प्रसाद जी ने इस नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर समन्वय किया है। यदि कल्पना पर आश्रित घटनाओं को हाटा दें तो नाटक नीरस हो जायेगा। ध्रुवस्वामिनी के साथ चन्द्रगुप्त का शकराज के शिविर में जाना, चन्द्रगुप्त की अपेक्षा किसी सामन्त कुमार से रामगुप्त की हत्या करवाना आदि काल्पनिक घटनायें हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रसाद जी ने ध्रुव स्वामिनी नाटक में ऐतिहासिकता को अक्षुण बनाते हुए इतिहास और कल्पना का समन्वय किया है। उन्होंने देशकाल के अनुरूप चित्रण करके नाटक को सजीव बना दिया है।